दिलीप कुमार
| birth_place = पेशावर, ब्रिटिश भारत | death_date = | death_place =हिंदूजा हॉस्पिटल मुंबई, महाराष्ट्र, भारत | occupation = अभिनेता |signature=Dilip Kumar signature.svg|माता-पिता=पिता:- लाला गुलाम सरवर (जमींदार और फल सोदागर) मां-आयशा|parents=पिता:- लाला गुलाम सरवर (जमींदार और फल विक्रेता) मां:- आयशा|death_cause=उम्र संबधी बीमारी|spouse= (मृत्यु तक) | }}|awards=|years active=१९४४-१९९९|relatives=|nationality=भारतीय|religion=इस्लाम}} दिलीप कुमार (11 दिसंबर, 1922 - 7 जुलाई, 2021) ; (जन्म का नाम: मुहम्मद यूसुफ़ ख़ान), हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता थे जो भारतीय संसद के उच्च सदन राज्य सभा के सदस्य रह चुके है। दिलीप कुमार को भारत तथा दुनिया के सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं में गिना जाता है, उन्हें दर्शकों द्वारा 'अभिनय सम्राट' के नाम से पुकारा जाता है, वे आज़ादी से लेकर ६० के दशक तक भारत के सबसे लोकप्रिय अदाकार थे। वे हिंदी सिनेमा के आज तक के सबसे कामयाब अदाकार हैं। उनके फ़िल्मों की कामयाबी दर लगभग अस्सी (८०) फ़ीसदी से ऊपर रही है छह दशकों के कार्यकाल में। उन्हें दुनिया में पहली बार परदे पर 'मेथड एक्टिंग' को इजाद करने का श्रेय भी दिया जाता है जिसके कारण वे तमाम पीढ़ियों के अदाकार के प्रेरणाश्रोत रहे। दिलीप कुमार को भारत का दूसरा एवं तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण और पद्म भूषण प्राप्त है । उन्हें पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज़ भी प्राप्त है। अभिनेेत्री और निर्माता देविका रानी ने उन्हें फिल्मों में काम दिया और उन्हीं के सुझाव पर उन्होंने अपना ''स्टेज नाम'' 'दिलीप कुमार' रखा। इसका एक कारण उस वक्त तक सिनेमा की बदनाम स्थिति थी और पिता का डर भी था।अपने करियर के शुरुआती वर्षों में कई सफल त्रासद या दु:खद भूमिकाएं करने के कारण उन्हें मीडिया में 'ट्रेजिडी किंग' भी कहा जाता था। व्यापार विश्लेषकों के अनुसार उनकी बहुत सी फ़िल्में इसलिए भी कामयाब हुईं क्योंकि जनता सिर्फ़ उनकी अदाकारी देखने आया करती थी फिर चाहे उन चलचित्रों में खास मनोरंजन के तत्व ना भी हों। इस प्रकार के वाक्या और किसी भी अदाकार के साथ नही हुएं हैं। उन्होंने बहुत सी बड़े पैमाने पर कामयाब फ़िल्मों में अदाकारी की है जो आजतक सबसे सफल चलचित्रों में गिनी जातीं हैं जैसे ''मुग़ल-ए-आज़म'' (१९६०), ''गंगा जमना'' (१९६१), इत्यादि। उन्होंने अपने करियर के दूसरे पड़ाव में भी कई अत्यंत कामयाब फिल्में दीं जब वह वृद्ध किरदार की भूमिका में भी प्रमुख किरदार निभा रहे थे। ऐसा वाक्या भी उनके अतिरिक्त किसी अदाकार के साथ नहीं हुआ है। उन्होंने फिल्मों में अदाकारी को रंगमंच से अलग किया और उसे नई परिभाषा दी जिसका प्रभाव उनके बाद के कलाकारों पर रहा। १९९८ में आई ''किला'' उनके करियर की आखिरी फ़िल्म थी। उन्हें वर्ष १९९४ में भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अपने अभिनय और भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार लाने के लिए उन्हें पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ''निशान-ए-इम्तियाज़'' दिया गया जिसे प्राप्त करने वाले वे इकलौते भारतीय हैं। विकिपीडिया द्वारा प्रदान किया गया
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द्वारा Dilip Kumar
प्रकाशित 1992
प्रकाशित 1992
Thư viện lưu trữ:
Trung tâm Học liệu Trường Đại học Cần Thơ
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4
द्वारा Jain, Lakhmi C., Tsihrintzis, George A., Balas, Valentina E., Sharma, Dilip Kumar
प्रकाशित 2020
प्रकाशित 2020
Thư viện lưu trữ:
Thư viện Trường Đại học Đà Lạt
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